Friday, November 27, 2015

युवा वर्ग का भोजन सडक के किनारों पर

मैं करीब आठ बजे सांय बाजार में थी।बाजार का नजारा अद्भुत था। अद्भुत तो नहीं श्याद रोज मर्रा का होगा पर श्याद मेरा ध्यान पहली बार गया था इस ख़ातिर मैं अद्भुत लिख रही हूं।नवयुवकों और युवतियों का बडा हजूमसड़कों पर या तो दुपाहिया वाहनों पर दौड रहा था या सड़क के किनारों पर गूफ्तगू कर रहा था।और बडा युवक युवतियों का समूह सडक किनारे बिक रहे भोजन को सुस्वाद
खा रहे थे। इन ठेलो पर चटपटा तेज गर्म ठण्डा सब बिक रहाथा और युवक युवतियां खा रहे थे।मैने हलावाई की दुकान पर देखा कि
वहाॅ फास्ट फुड ,कचौरी समोसे सब बिक रहा था और युवा वर्ग  बहुत शौक से खा रहा  था।एक युवक ने कचौरी खाते हुये खुशी जाहिर करते हुये बोला आज 5/'में आज डिनर होगया । उसका यह कहना भेरे लिये सोचना लाज़मी हो गया।मै किकर्तव्य मूढ हो गयी।
इन सब बच्चों में से कुछ शिक्षा के लिये , कोचिंग के लिये या काम के लिये अपना घर छोड कर आया है पर उसके लिये खाने की उतम व्यवस्था नही होती।होस्टल स में फिर भी ठीक ठाक खाना  होजाता है पर जो बच्चे अलग से कमरा लेकर पढते है  उन्हे बहुत मुश्किल होती है ।इसकी मुख्य वजह हम बच्चों को बाहर भेजने से पहले तैयार नही करते । हम उन्हे खाना बनाना नही सिखाते।उन्हे आत्मनिर्भर नही बनाते ।
मुझे याद है सन् 1978 में हमारे घर का एक कमरा दो विधार्थियों ने लिया था दोनो लाॅ करने गाॅव से जयपुर आये थे । दोनों खाना बनाने में इतने परांगत थे कि दोनो समय बहुत सुस्वाद खाना बनाते थे और कभी विशेष   चीज बनाने पर हमें भी खिलाते थे।
बच्चे पढने सदैव बाहर जाते थे पर पहले उन्हे आधारभूत और मूल भूत जरुरतों को पूरा करने कि सीख देकर ही भेजा करते थे।पर हमारा जीवन बाजार व्यवस्था का हिस्सा हो गया है।हमे अपने नवयुवकों की सेहत का ध्यान में रखा कर खाना ताजा और उतम और स्वास्थय को मद्दे नज़र रख कर खाना चाहिये।और इसकी
शि क्षा  देकर आगे बढने का मौका देना चाहिये।क्योंकि हम जब हमारे हाथ में अच्छा करियर तो होगा पर कमाया हुआ सब सेहत ठीक  रखने में व्यय हो जायेगा

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