Friday, December 11, 2015

कहानी

                                   सुतक
आज सुबह रिचा अपने पिता के चचेरे भाई अर्थात् अपने चाचा की मृत्यु का समाचार परिवार के व्हाटस अप समूह से मिला। सुबह सवेरे यह दुःखद समाचार देख रिचा का मन उद्वलित हुआ।मन की पीडा किसके साथ बाॅटे  क्यूं कि मन की भाषा समझने वाले मित्र बचे नहीं।जिन अपनों  के साथ इस दर्द को बाॅटा जा सकता था। वो अपने कहीं अपने आप में इतने व्यस्त थे कि उन्हे बताने का मन हल्का किया जाना सभ्भव नहीं था । ऐसे अवसरों पर रिचा को अक्सर याद आती है अपने पिता कि जो ऐसे अवसरों पर उसके भावुक मन को सुन ते और समझते भी थे । किन्तु उन्हे भी इस दुनिया से गये कोई बारहवर्ष का लंबा समय बीत गया था।
आखिर रिचा ने मन को समझाया और व्हाटस अप समूह पर ही एक अफसोस का मैसेज लिख कर अपनी संवेदना प्रकट करने के साथ साथ अपने मन का गुब्बार निकल लिया।
रिचा के ये चाचा आजकल अपनी बडी बेटी के पास दिल्ली में रह रहे थे जहां उनका निधन हुआ था।रिचा ने अपने इन चाचा के देहवसान की सूचना अपने भाई और अपने दूसरे चाचा को दी । और पूछा कि आप लोग बैठक में चलेगें क्या? मैं आप लोगों के साथ चलना चाहूंगी ।दोनों ने रिचा को राय दी कि आप बैठक में मत जाओ ।आपके बेटे की शादी तय होगयी और हमारे परिवार अर्थात्  रिचा के मायके  में सूतक लग गया है। इसलिये रिचा को  चाचा के तीये की बैठक में नहीं जाना चाहिये । रिचा  को यह बात कुछ समझ नहीं आयी कि आखिर डेढ माह बाद होनी वाली पुत्र की शादी का चाचा के तीये की बैठक और सूतक से क्या संबध है।और कौन सी दिवंगत आत्मा दोहते के विवाह केसमाचार से खुश ही होगी ना कि नाखुश । यह क्या  सूतक है। क्या यह मात्र मन का भ्रम मात्र तो नहीं है।
रिचा ने सब की राय को दरकिनार करते हुये बैठक में जाने का निर्णय लिया और और बैठक में आये समस्त रिश्तेदारों को विवाह का निमंत्रण भी ।

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