मैं करीब आठ बजे सांय बाजार में थी।बाजार का नजारा अद्भुत था। अद्भुत तो नहीं श्याद रोज मर्रा का होगा पर श्याद मेरा ध्यान पहली बार गया था इस ख़ातिर मैं अद्भुत लिख रही हूं।नवयुवकों और युवतियों का बडा हजूमसड़कों पर या तो दुपाहिया वाहनों पर दौड रहा था या सड़क के किनारों पर गूफ्तगू कर रहा था।और बडा युवक युवतियों का समूह सडक किनारे बिक रहे भोजन को सुस्वाद
खा रहे थे। इन ठेलो पर चटपटा तेज गर्म ठण्डा सब बिक रहाथा और युवक युवतियां खा रहे थे।मैने हलावाई की दुकान पर देखा कि
वहाॅ फास्ट फुड ,कचौरी समोसे सब बिक रहा था और युवा वर्ग बहुत शौक से खा रहा था।एक युवक ने कचौरी खाते हुये खुशी जाहिर करते हुये बोला आज 5/'में आज डिनर होगया । उसका यह कहना भेरे लिये सोचना लाज़मी हो गया।मै किकर्तव्य मूढ हो गयी।
इन सब बच्चों में से कुछ शिक्षा के लिये , कोचिंग के लिये या काम के लिये अपना घर छोड कर आया है पर उसके लिये खाने की उतम व्यवस्था नही होती।होस्टल स में फिर भी ठीक ठाक खाना होजाता है पर जो बच्चे अलग से कमरा लेकर पढते है उन्हे बहुत मुश्किल होती है ।इसकी मुख्य वजह हम बच्चों को बाहर भेजने से पहले तैयार नही करते । हम उन्हे खाना बनाना नही सिखाते।उन्हे आत्मनिर्भर नही बनाते ।
मुझे याद है सन् 1978 में हमारे घर का एक कमरा दो विधार्थियों ने लिया था दोनो लाॅ करने गाॅव से जयपुर आये थे । दोनों खाना बनाने में इतने परांगत थे कि दोनो समय बहुत सुस्वाद खाना बनाते थे और कभी विशेष चीज बनाने पर हमें भी खिलाते थे।
बच्चे पढने सदैव बाहर जाते थे पर पहले उन्हे आधारभूत और मूल भूत जरुरतों को पूरा करने कि सीख देकर ही भेजा करते थे।पर हमारा जीवन बाजार व्यवस्था का हिस्सा हो गया है।हमे अपने नवयुवकों की सेहत का ध्यान में रखा कर खाना ताजा और उतम और स्वास्थय को मद्दे नज़र रख कर खाना चाहिये।और इसकी
शि क्षा देकर आगे बढने का मौका देना चाहिये।क्योंकि हम जब हमारे हाथ में अच्छा करियर तो होगा पर कमाया हुआ सब सेहत ठीक रखने में व्यय हो जायेगा
Friday, November 27, 2015
युवा वर्ग का भोजन सडक के किनारों पर
Thursday, November 12, 2015
विवाह पूर्व समझौते का कानून
विवाह पूर्व समझौता सबंधी कानून पर हमारे देश में चर्चा शुरु हो गयी है ।देर सवेर इस तरह का कानून हमारेदेश में बन जायेगा ।पूर्व में भी महिला सशक्तिकरण के कानून हमारे देश में हैं ।माता पिता की सम्पति में बेटी का हक,घरेलू हिंसा, इत्यादि।
परन्तु इन कानूनों के साथ साथ कुछ सवाल हमेशा मेरे सामने खडे रहते है।1
औरत घर की धुरी होती है।वो माॅ ,बेटी बहन ,पत्नी ,और बहुत से रिश्तों से बंधी होती है तो पुरुष भी इसी प्रकार पिता बेटा भाई और उन सभी रिश्तों मे बन्धा है फिर औरत के रिश्तों को इतना भारी बना दिया जाता है और पुरुष अपने रिश्तों में इतना जकडा हुआ प्रतीत नहीं होता।जितना महिला स्वय को जकडा हुआ महसूस करती है।
यह बात ठीक है कि औरत घर की धुरी होती है ।वो माॅ बनने जैसा जोखिम भरा कार्य करती है यह गुण उसे प्राकृति ने दिया है।वो परिवार को वंश देती है पर फिर उसी पर हिंसा होती है ।घर से निकाली जाती हैं।जीवन भर संघर्ष के बाद भी उसे हमेशा बेघर सा रहना पडता है।
गत दिनों से मैं एक घरेलू हिंसा के मामले में परिवार की किसी लड़की को समस्या से निकलने की कोशिश कर रही हूं यह लडकी 17 साल का परिवारिक जीवन और 12 साल का बेटा छोड कर माॅ और भाई के घर आ गयी। तीन माह पूर्व जब वो मायके आई थी तब
उसके पावं नील से सूजे हुये थे। पेट में से पस आ रहा था ।भाई और माॅ ने इलाज करवाया।पर ठीक होते ही मायके वालों को भी बोझ लगने लगी।वो समस्या लेकर मेरे पास आये। लडकी से बात करने पर पता चला कि वो 17साल से इसी प्रकार हर दो चार माह में पीटती है पर उसने मायके में कुछ बताया नहीं पर अब उसकी सहन शीलता जवाब दे चुकी है।अब वो ससुराल अपने ससुराल वालों द्वारा लिखित आश्वासन के बाद ही जायेगी। विवाह पूर्वसमझौता कानून पर सब तरह से विचार होगें तभी कानून बनेगा।
परन्तु समाज के लोग जो कभी बेटी लाते है कभी बेटी देनी भी है।बहू को यातना कैसे दे सकते है।दूसरा मां बाप से मेरी गुजारिश
है कि बेटियों को आत्मनिर्भर बनाये । विवाह की जल्दी में उसे दूसरे के गले की घण्टी न बनाये।दूसरी तरफ पुरुष को समझना होगा कि
तलाक,छोडना , यतना देना पुरषत्व की निशानी नहीं है।
नियम कानून बनाना अच्छा है महिलासशक्तिकरण अच्छा है पर इससे पहले अपने विवाह संस्का र में जो हमारी स॔स्कृति का आधार है उसे दोनों पक्षों कोअपने अपने अहम् छोडकर अपना दायत्वि का निर्वहन करना चाहिये। क्योंकि चाहे विवाह पूर्व समझौते से अलग हो या तलाक से परिवार तो बिखरेगा बच्चे तोप्रभावित होगे।इसलिये हमें अपनी सास्कृंतिक धरोहर विवाह संस्था पर गर्व महसूस करते हुये पति पत्नी दोनो को व्यक्तिगत अहम् छोडकर विवाह को जीवन का हिस्सा मानते हुये जिन्दगी चलनी चाहिये।
Wednesday, November 4, 2015
अपने रंग में ढाला
सडक परचलतेचलते
जिन्दगी का फलसफा
बहुत अर्से बाद समझ आया।
मैं साइड लेन से मुख्य लेन पर आ रही थी,
जिन्दगी जहाॅ सरपट दौडी जा रही थी।
साइड लेन से मुख्य लेन पर जुडने के लिये
मैने गाडी को हौले से ब्रेक लगायी और गाडी
को मुख्य लेन पर लायी।
कम गति से मैंने साइडलेन से
मुख्य लेन में अपने लिये जगह बनाई।
सड़क का नियम जिन्दगी पर कितना
खरा उतरता है।
पहले भाईयों में अपनी जगह बनाने के लिये
माॅ बापू दादा दादीसब के काम निपटाती थी
और बहुत थोडा सा पाती थी उस थोडे में
भी मेरी गुलक भर जाती थी।
अभी थोडी ही गुल्लक भर पाई थी
कि मैं नयी ब्याही कहलायी थी।
अब मुझे वही क्रियायें दोहरानी थी
नये घर में अपनी जगह बनानानी थी।
इन नयों से मेरा कोई परिचय नहीं था
पर मुझे इन सब से ही तो निभानी थी ।
मैने खुद को रिजर्व गेयर में डाला
हर एक को अपनी नज़र में सभ्भाला
इसी में सारा जीवन रीत गया तब
जीवन ने अपने रंग में ढाला।
पुस्तक समीक्षा ः एक महात्मा एक संत
पुस्तक समीक्षा *एक था डॉक्टर था संत* ( आम्बेडकर गांधी संवाद ) लेखिका - अरुन्धती राय पृष्ठ संख्या -139 क़ीमत - 2...
-
आजकल युवा पीढी में आत्म हत्या के बहुत मामले इन दिनों देखने सुनने को मिल रहे हैं।प्रत्यूषा बनर्जी के अप्रत्याशित रुप से चला जाना सबके मन में ...
-
सत्य परम्परा अस्तित्व मेरा , मेरा है इसे तुम नकार नहीं सकते! मस्त हाथी की चल में कितनाभी तुम चल लो सत्य को तुम इस जहां से मिटा नही सकते!...
-
मित्रों ,विवाह भारतीय संस्कृति में एक महत्व पूर्ण संस्कार है ।इस संस्कार पर खर्च होने वाले लवाजमों पर तो श्रृंखलावार कुछ कंहूगी परन्तु आज म...