Wednesday, February 4, 2015

जब मुश्किलें बने वरदान

मित्रों कभी कभी हमारी विकट परिस्थति हमें नया भी दे जाती है । यदि हम उस परिस्थिति को धैर्य पूर्वक सह  ले। गत वर्ष मई के प्रथम साप्ताह के पहले रविवार को मैं और मेरे पति करीब सात बजे शहर के मुख्य बाजार के लिये घर से निकले साढे सात बजे कार पार्क कर क्रकरी की दुकानों को खंगालने के लिये आगे बढ़ रहे थे कि सड़क की चिकनाहट पर मेरा पांव फिसला और मैं स्लिप होकर गिर गयी।मेरे सीधे हाथ में फ्ररैक्चर हो गया।
  हम बाजार से सीधे अस्पताल गये ।हाथ में प्लास्टर करा कर घर आये । अगले दिन से मुझे सवा महीने की छुट्टी लेनी पडी। दो चार दिन बाद जैसे ही दर्द कम हुआ ,वैसे ही मुझे महसूस हुआ गर्मी के इतने लंबे दिन बिना नौकरी के कैसे काटूंगी।
तब मैंने मित्रों द्वारा संचालित काव्य समूह ज्वाइन कर लिया। समूह पर अग्रज नई नई विधायें कविता की सीखा रहे थे। सवा महीने की उस अवधि में मैंने काव्य की अनेक विधाओं को सीखना शुरू किया । साथ ही इन सब विधाओं की थ्योरिटिकल जानकारी भी जानी।
यह सब विधायें बहुत वर्षों से सीखना ,समझना चाहती थी।परन्तु नहीं कर पाई। हाथ का फ्ररैक्चर मेरे लिये अभिशाप के बदले वरदान साबित हुआ। मेरा सवा महीना कब कट गया मुझे पता भी नहीं चला। सवा महीने बाद मैं दोहों और मुक्तक ,गजल ,गीत लिखने की दिशा में अग्रसर थी।
                                
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