भित्रों ,
पयटन की जिज्ञासा इस बार वृंदावन ले आयी।मै इस्कान मंदिर मे भगवत सत्र में बैठी हूं। बोलने वाला क्या कह रह है वो जाने ।मुझे जो देखना है वो देख रही हूं। संस्कृतियों का अद्घभुत सगंम जो इसी देश में सभ्मव है।
देश विदेश के लोग यहां एकत्र है।विदेशी संस्था द्वारा संचालित मंदिर अत्यन्त कृष्ण मय है।पर यह उनका अपना ढ़ग से कृष्ण को समझने की इनकी जिद् ।आप कुछ कहे पर यहां भिन्न भिन्न देशों के लोग कृष्णमय है।हरे कृष्णा हरेकृष्ण से गुजाय मान है।दुनिया का हर मानव जन्म मृत्यु के इस चक्र को समझने को व्याकुल है ।इस लिये घूम रहा है मन्दिर मन्दिर ,शहर शहर, शायद कही मिल जाये ।कुछअनुरतरित प्रश्नों के जवाब।
Thursday, October 2, 2014
वृदावन से
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एक था सन्त एक था डॉक्टर
पुस्तक समीक्षा *एक था डॉक्टर , एक था संत* ( आम्बेडकर गांधी संवाद ) लेखिका - अरुन्धती राय पृष्ठ संख्या -139 क...
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भ्रमर दोहा 22 गुरु और 4 लघु वर्ण भूले भी भूलूँ नहीं, अम्मा की वो बात। दीवाली देती हमें, मस्ती की सौगात।। 22 2 22 12 22 2 2 21 222 22...
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