दिल्ली हाईकोर्ट का साहसिक फैसला
दिल्ली हाइकोर्ट ने एक महत्व पूर्ण फ़ैसला देकर बहुत से वृद्घ माता पिता को राहत दे दी है। माता पिता के साथ रहते रहते बच्चे आचनक कहने लगते हैँ माता पिता हमारे साथ रहते हैं,। माता पिता समझ नही पाते कि यह बदलाव कैसे और कब हुआ ।मां बाप इसे बच्चो का बचपना समझ दर किनार करने की कोशिश करते कि इतने में बच्चे आचनक इस तरह व्यवहार करते कि जैसे माता पिता ने उन्हें जन्म देकर भारी ग़लती कर दी हो। ज़रा तकलीफ़ या ज़िम्मेवारी आते ही
वो यहाँ तक कहने लगते पैदा करके एहसान किया है क्या? ये तक भी सुनते हैं माता पिता कि आचनक उनके सब कुछ पर हक़ ज़माने लगते हैं मानो उनकी कोई ज़रूरत ही नहीं हो।आचनक एक स्वर आता है मकान मेरे नाम कर दो तुम्हारा क्या पता कब सरक लो सो बेचारे शांति घर के सुखके लिये वो भी कर देते हैं।इसके बाद अगला क़दम प्रापर्टी बेचने की माँग आ जाती है। हकेबक्के मां बाप बरसों से जहाँ रह रहे थे उस अपने नीड़ को छोड़कर कहाँ जाये।इन्हीं परिस्थियों को देखते हुये कोर्ट का फ़ैसला आया है कि माँ बाप के मकान पर लड़के का हक़ नहीं होगा चाहे वो माता पिता के साथ क्यों न रहता हो। इस अहम् फ़ैसले में तो यहाँ तक कहा है कि बेटा चाहे विवाहित हो या आविवाहित। माता पिता जबतक चाहे तब तक पुत्र को साथ रखे अन्यथा नहीं भी रख सकते।न्यायधीश प्रतिमा रानी ने यह फ़ैसला एक बुज़ुर्ग दम्पति की याचिका के बाद दिया।इस दम्पति को पुत्र और पुत्र वधू द्वारा घर से निकालने बाद दिया।न्यायालय ने कहा -माता पिता ने
अच्छे संबंधों के रहते बेटा बहू को साथ रहने दिया।परन्तु इसका तात्यपर्य यह नहीं कि वो ता उम्र बोझ उठायेंगे।
पुत्र और उसका परिवार तब तक ही माता पिता की इच्छा पर ही साथ रह सकता है । माता पिता की अनइच्छा पर नही।
हाईकोर्ट का यह फ़ैसला उन माता पिता के लिये बहुत उत्तम है जिनके बच्चे वृद्धावास्था में घर से बेघर कर देते हैं।और उनकी जमा पूजी हड़प लेते हैं।
यह पैसाला तभी सार्थक होगा जब माता पिता बेटे की बदनीयती का समय रहते विरोध करेगे।और समय से पहले अपना घर भावुकता में बेटों को नही सौंप देंगे। @cरेणुजुनेजा
दिल्ली हाइकोर्ट ने एक महत्व पूर्ण फ़ैसला देकर बहुत से वृद्घ माता पिता को राहत दे दी है। माता पिता के साथ रहते रहते बच्चे आचनक कहने लगते हैँ माता पिता हमारे साथ रहते हैं,। माता पिता समझ नही पाते कि यह बदलाव कैसे और कब हुआ ।मां बाप इसे बच्चो का बचपना समझ दर किनार करने की कोशिश करते कि इतने में बच्चे आचनक इस तरह व्यवहार करते कि जैसे माता पिता ने उन्हें जन्म देकर भारी ग़लती कर दी हो। ज़रा तकलीफ़ या ज़िम्मेवारी आते ही
वो यहाँ तक कहने लगते पैदा करके एहसान किया है क्या? ये तक भी सुनते हैं माता पिता कि आचनक उनके सब कुछ पर हक़ ज़माने लगते हैं मानो उनकी कोई ज़रूरत ही नहीं हो।आचनक एक स्वर आता है मकान मेरे नाम कर दो तुम्हारा क्या पता कब सरक लो सो बेचारे शांति घर के सुखके लिये वो भी कर देते हैं।इसके बाद अगला क़दम प्रापर्टी बेचने की माँग आ जाती है। हकेबक्के मां बाप बरसों से जहाँ रह रहे थे उस अपने नीड़ को छोड़कर कहाँ जाये।इन्हीं परिस्थियों को देखते हुये कोर्ट का फ़ैसला आया है कि माँ बाप के मकान पर लड़के का हक़ नहीं होगा चाहे वो माता पिता के साथ क्यों न रहता हो। इस अहम् फ़ैसले में तो यहाँ तक कहा है कि बेटा चाहे विवाहित हो या आविवाहित। माता पिता जबतक चाहे तब तक पुत्र को साथ रखे अन्यथा नहीं भी रख सकते।न्यायधीश प्रतिमा रानी ने यह फ़ैसला एक बुज़ुर्ग दम्पति की याचिका के बाद दिया।इस दम्पति को पुत्र और पुत्र वधू द्वारा घर से निकालने बाद दिया।न्यायालय ने कहा -माता पिता ने
अच्छे संबंधों के रहते बेटा बहू को साथ रहने दिया।परन्तु इसका तात्यपर्य यह नहीं कि वो ता उम्र बोझ उठायेंगे।
पुत्र और उसका परिवार तब तक ही माता पिता की इच्छा पर ही साथ रह सकता है । माता पिता की अनइच्छा पर नही।
हाईकोर्ट का यह फ़ैसला उन माता पिता के लिये बहुत उत्तम है जिनके बच्चे वृद्धावास्था में घर से बेघर कर देते हैं।और उनकी जमा पूजी हड़प लेते हैं।
यह पैसाला तभी सार्थक होगा जब माता पिता बेटे की बदनीयती का समय रहते विरोध करेगे।और समय से पहले अपना घर भावुकता में बेटों को नही सौंप देंगे। @cरेणुजुनेजा
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