Sunday, December 18, 2016

दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

                                                दिल्ली हाईकोर्ट का साहसिक फैसला
दिल्ली हाइकोर्ट ने एक महत्व पूर्ण फ़ैसला देकर बहुत से वृद्घ माता पिता को राहत दे दी है। माता पिता के साथ रहते रहते बच्चे आचनक कहने लगते हैँ माता पिता  हमारे साथ रहते हैं,। माता पिता समझ नही पाते कि यह बदलाव कैसे और कब हुआ ।मां बाप इसे बच्चो का बचपना समझ दर किनार करने की कोशिश करते कि इतने में बच्चे आचनक इस तरह व्यवहार करते कि जैसे माता पिता ने उन्हें जन्म देकर भारी ग़लती कर दी हो। ज़रा तकलीफ़ या ज़िम्मेवारी आते ही
 वो यहाँ तक कहने  लगते पैदा करके एहसान किया है क्या? ये तक भी सुनते हैं माता पिता  कि आचनक उनके सब कुछ पर हक़ ज़माने लगते हैं मानो उनकी कोई ज़रूरत ही नहीं हो।आचनक एक स्वर आता है मकान मेरे नाम कर दो तुम्हारा क्या पता कब सरक लो सो बेचारे शांति घर के सुखके लिये वो भी कर देते हैं।इसके बाद अगला क़दम प्रापर्टी बेचने की माँग आ जाती है। हकेबक्के मां बाप बरसों से जहाँ रह रहे थे उस अपने नीड़ को छोड़कर कहाँ जाये।इन्हीं परिस्थियों को देखते हुये कोर्ट का फ़ैसला आया है कि माँ बाप के मकान पर लड़के का हक़ नहीं होगा चाहे वो माता पिता के साथ क्यों न रहता  हो। इस अहम् फ़ैसले में तो यहाँ तक कहा है कि बेटा चाहे विवाहित हो या आविवाहित। माता पिता जबतक चाहे तब तक पुत्र को साथ रखे अन्यथा नहीं भी रख सकते।न्यायधीश प्रतिमा रानी ने यह फ़ैसला एक बुज़ुर्ग दम्पति की याचिका के बाद दिया।इस दम्पति को पुत्र और पुत्र वधू द्वारा घर से निकालने बाद दिया।न्यायालय ने कहा -माता पिता ने
अच्छे संबंधों के रहते बेटा बहू को साथ रहने दिया।परन्तु इसका तात्यपर्य यह नहीं कि वो ता उम्र बोझ उठायेंगे।
पुत्र और उसका परिवार तब तक ही माता पिता की इच्छा पर ही साथ रह सकता है । माता पिता की अनइच्छा पर नही।
हाईकोर्ट का यह फ़ैसला उन माता पिता के लिये बहुत उत्तम है जिनके बच्चे वृद्धावास्था में घर से बेघर कर देते हैं।और उनकी जमा पूजी हड़प लेते हैं।
यह पैसाला तभी सार्थक होगा जब माता पिता बेटे की बदनीयती का समय रहते विरोध करेगे।और समय से पहले अपना घर भावुकता में बेटों को नही सौंप देंगे।  @cरेणुजुनेजा
   

Saturday, December 3, 2016

बेकल उत्साही

बेकल उत्साही
प्रसिद्ध शायर बेकल उत्साही का इंतक़ाल साहित्य जगत के लिये अपूरणीय क्षति है। 
बेकल उत्साही साहित्य जगत के एक चमकते बेबाक़ सितारे थे। बेकलउत्साही उनका उपनाम था।
आपका पूरा नाम मोहम्मद शफ़ी खान था।आपका जन्म एक जून १९२८में  ग्राम ग़ौर राम पुरा में हुआ था।
आपके पिता शफ़ी मोहम्मद जफर थे।आपके उपनाम की अलग कहानी है।
१९५२में पण्डित नेहरु ने एक कार्यक्रम में 
आपका काव्यपाठ सुनकरदिया था।
साहित्यिक योगदान
आपकी मुख्यप्रकाशित साहित्य में 
बापू का सपना
नग्मा औ तरन्नुम
सरुरे जाविदाँ
पुरवाईयां
निशाने ज़िन्दगी
विजय बिगुल
चहके बगिया महके गीत
कोमल  मुखड़े  बेकल गीत
अपनी धरती चाँद का दर्पण
ग़ज़लसांवरी
रंग हज़ारों ख़ुशबू एक
मिट्टी , रेत, चट्टान
अन्जुरी भर आन्दोलन
ग़ज़ल गंगा
धरती सदा सुहागिन।
लफ्जोंकी घटायें इत्यादि  प्रमुख हैं। आपको दो दर्जन साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया  ।
१९४६ में पद्म श्री से अंलकृत , १९५५ में  राष्ट्पति सम्मान द्वारा सम्मानित   किया गया।
मैं सुदामा प्यार का , प्यार द्वारिका नाथ 
प्यासे दोनों नयन हैं , भूखे दोनों हाथ ।
मैं तुलसी का वंश हूँ, अवध पुरी है धाम ।
साँस साँस गीता   बसी रोम रोम राम,
धर्म मेरा इस्लाम है, भारत जन्म स्थान।
अपने मन मैं करुं, मैं कैसा इंसान ।
भाव सुभाव के पाठ में ,मैं अक्षर अनमोल, 
नबी मेरा इतिहास है, कृष्ण मेरा भूगोल ।
 होली डूबी रंग में ,ईद हुई पोशाक
 मानवता विजयी हुई  नफ़रत हो गयी ख़ाक।
ये है बेकल उत्साही।  

आत्म हत्या भावुक क्षण में उठाया कदम

आजकल युवा पीढी में आत्म हत्या के बहुत मामले इन दिनों देखने सुनने को मिल रहे हैं।प्रत्यूषा बनर्जी के अप्रत्याशित रुप से चला जाना सबके मन में सवालिया प्रश्न सबके मन में उठ रहा है कि ऐसा क्यों बढता जा रहा हैं।पढने वाले बच्चे जब आत्म हत्या करते है तो हम शिक्षा ,प्रतियोगिता के  वातातरण में कारण ढूढ़ते हैं। आज का युवा वर्ग सब  जल्दी जल्दी सब पाना चाहता है । मन चाहा पा भी लेते तो और और पाना चाहते हैं। पा कर संजोना,संजो कर सहेजने का धैर्य समाज से जैसे विलुप्त होता जा रहा है
हमारी जरुरतें ,इच्छायें महत्वाकाक्षायें असीमित होती जा रही हैंऔर यह पूरी भी हो रही हैं। और जितनी पूरी हो रही हैं उतनी बढ रही हैं।जब बच्चे कैरियर या शिक्षा केलिये बाह र  जाते तब से माॅ बाप आचानक चाहने लगते कि बच्चे उनकी सुसुप्त महत्वाकंक्षा यें भी पूरी करें।आज बच्चे के शिक्षा ग्रहण कर बाहर निकलते ही उसका पैकिज अत्यन्त महत्व पूर्ण हो जाता है।और उसकी तुलना उसके आसपास के दोस्तो ,रिश्ते दारों से होने लगती है।
बच्चे क्या खा रहे है किन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे हैं यहबात दिनों दिन गौण होती जा रही है।महत्व पूर्ण यह हो गया है कि उनका पैकेज क्या है?
,वो ब्राडेड कपडे, जूते पहन रहे है बडे होटलों में खा रहे है।जीवन का स्तर शुद्ध ताजे भोजन से नहीं बिना नहायें डिओ की खुशबू से तय हो रहा है।ताजे भोजन की जगह डिब्बा बन्द खाने से हो रही है।
शादी से पहले लिव इन तो ऐसे है जैसे इससे किसी को कोई फर्क ही नहीं पडता।सैक्स की व्यक्तिगत कोमल भावना अखबारों और इलेक्ट्रोनिक की सुर्खियां बनती हैं फिर ब्रेक अप की खबरें।और इतने  नव युवको ,नवयुवतियों को समाज जिसे बहुत पहले पीछे छोड आये थे वो दिखने लगता है।और चारों ओर जहां कल तक गलैमर दिख रहा था ,अब जरा सा नीचे आने पर सब डूबता सा नज़र आने लगता है। उजाला अब अंधेरे में बदलने की आशंका मात्र से मानसिक संतुलन  अपना आप खो बैठते है और आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।क्योंकि उन्हे हमनें संघर्ष  करना नहीं सिखाया है। हमनें तो उन्हे मात्र पाना और जल्दी जल्दी सब पाना सिखाया है।
भावुकता ,त्याग ,समर्पण ,हमें देना सिखाता था जब कि आज प्रचलित पाने कीऔर सिर्फ हासिल करने  की चाह ने आलगाव और आत्महत्या जैसे कृत्यों को बढवा दिया है। रेणुजुनेजा।

पुस्तक समीक्षा ः एक महात्मा एक संत

​ पुस्तक समीक्षा             *एक था डॉक्टर   था संत*            ( आम्बेडकर गांधी संवाद )  लेखिका - अरुन्धती राय पृष्ठ संख्या -139  क़ीमत - 2...