मित्रों ,
अस्वस्थ होने के कारण दो दिन विचार आगे नहीं बढा. पाइ ।
आइए आज बात करते हैं इज्जत और आदर की
शिक्षकों और गुरुओं को व्यथा रहती है,शिष्य आदर देते , आदर नहीं करते। बहुत दुःख और खेद की बात है।परन्तु दुनिया बदल रही है।गुरु शिष्य परम्परा अब समाप्त हो गयी है। अब सूचनाओं और जानकारियों से संसार अटा पडा है। हैं ।
ज्ञान के लिये शिष्य अपने आध्यापक का अंकलन करता है , तो वो उन्हे उस स्तर पर नहीं पाता जहाँ अध्यापक या शिक्षक होना चाहिये। जानकारियों के लिये आध्यापक भी वहीं देखते हैं जहां शिष्य देखते हैं ।तब छात्र आदर नही अंकलन करते हैं । छात्र अध्यापक को उस स्तर पर नहीं देखते जहाँ देखना चाहते हैं।आज आध्यापक भी उन्ही छात्रों को तवज्जो देते हैं जो परिणाम साथ पैसा दे अर्थात टयूशन लें।आध्यापक अगर छात्र के मन तक पहुँच कर पढ़ायेगा , सिखायेगा तब उसे ऐसी कोई उम्मीद नहीं होगी।हमें आज भी वो शिक्षक याद हैं जिन्होने हमारे मनों में कुछ करने की आग भरी थी। वो भी याद हैं जिन्होने कमतर होते हुये भी पीठ थपथपाई थी कि नहीं, तुम कर लोगे। ऐसे आध्यापकों ने
इज्जत मांगी नहीं थी , उन्होने इज्जत कमाई थी ।इज्जत earn की थी।लोगों को इज्जत माँगनी नहीँ इज्जत कमानी चाहिये।मेरी एक गणित की टीचर जो विद्यालय की प्रिन्सिपल भी थी। हम गणित में कमज़ोर छात्राओं को इन्टर वल में
गणित करवाती थी , फिर भी न कर पाने पर कहती थी , अच्छा जो हिस्सा पसन्द हो उसको पूरा ठीक करना ,ताकि तुम्हारे नम्बर ज़्यादा प्रभावित ना हो ।उनका यह लहजा अब तक गूजंता कानों में, और उनके लिये मन श्रद्धा से भर उठता है।
रेणु जुनेजा c@✍🏻
अस्वस्थ होने के कारण दो दिन विचार आगे नहीं बढा. पाइ ।
आइए आज बात करते हैं इज्जत और आदर की
शिक्षकों और गुरुओं को व्यथा रहती है,शिष्य आदर देते , आदर नहीं करते। बहुत दुःख और खेद की बात है।परन्तु दुनिया बदल रही है।गुरु शिष्य परम्परा अब समाप्त हो गयी है। अब सूचनाओं और जानकारियों से संसार अटा पडा है। हैं ।
ज्ञान के लिये शिष्य अपने आध्यापक का अंकलन करता है , तो वो उन्हे उस स्तर पर नहीं पाता जहाँ अध्यापक या शिक्षक होना चाहिये। जानकारियों के लिये आध्यापक भी वहीं देखते हैं जहां शिष्य देखते हैं ।तब छात्र आदर नही अंकलन करते हैं । छात्र अध्यापक को उस स्तर पर नहीं देखते जहाँ देखना चाहते हैं।आज आध्यापक भी उन्ही छात्रों को तवज्जो देते हैं जो परिणाम साथ पैसा दे अर्थात टयूशन लें।आध्यापक अगर छात्र के मन तक पहुँच कर पढ़ायेगा , सिखायेगा तब उसे ऐसी कोई उम्मीद नहीं होगी।हमें आज भी वो शिक्षक याद हैं जिन्होने हमारे मनों में कुछ करने की आग भरी थी। वो भी याद हैं जिन्होने कमतर होते हुये भी पीठ थपथपाई थी कि नहीं, तुम कर लोगे। ऐसे आध्यापकों ने
इज्जत मांगी नहीं थी , उन्होने इज्जत कमाई थी ।इज्जत earn की थी।लोगों को इज्जत माँगनी नहीँ इज्जत कमानी चाहिये।मेरी एक गणित की टीचर जो विद्यालय की प्रिन्सिपल भी थी। हम गणित में कमज़ोर छात्राओं को इन्टर वल में
गणित करवाती थी , फिर भी न कर पाने पर कहती थी , अच्छा जो हिस्सा पसन्द हो उसको पूरा ठीक करना ,ताकि तुम्हारे नम्बर ज़्यादा प्रभावित ना हो ।उनका यह लहजा अब तक गूजंता कानों में, और उनके लिये मन श्रद्धा से भर उठता है।
रेणु जुनेजा c@✍🏻
बहुत सुन्दर।
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