मुशि्कलों को जो खे रही ,उस मां का श्रृंगार बनों,
जीवन की मुशि्कलों से लडकर , तुम जीवन का आधार बनों.
खे रही जो मुश्किलों से , उस भगनी का रूप श्रृंगार बनों,
जूझ रही जो कश्ती मंझधार में,उस कश्ती की पतवार बनों.
पुस्तक समीक्षा *एक था डॉक्टर , एक था संत* ( आम्बेडकर गांधी संवाद ) लेखिका - अरुन्धती राय पृष्ठ संख्या -139 क...
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