फिल्म समीज्ञा
समाज का आइना भी दिखाती है दंगल
भारत में अपने राष्ट्रीय खेलों की साख को पुर्न जीवित करने के उदेश्य से बनायी गयी फिल्म दंगल देखने का मौक़ा मिला। आमिर की इस फिल्म ने आमिर को और निर्देशकों से अलग कर दिया।सतर करोड़ की इस फिल्म को देखने जायेंगे तो पायेंगे की देशप्रेम को एक नये तरीक़े से , सामाजिक समस्याका समाधान करते हुये फिल्म का निर्माण किया गया है। निर्देशन भी बहुत सशक्त और सधा हुआ है। जो दर्शकों पूरे समय बाँधे रखता है।फिल्म जहां कुश्ती की हमारी परम्परा से हमें बान्धे रखती है वही वही इस खेल को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की लालसा रखती है। दूसरी ओर यह महिला सशक्तिकरण विशेष रुप से बेटी पढ़ाओं, बेटी बचाओ को आगे ले जाती है। बेटी को मुक़ाम तक पहुचाओं को पूरा करती दिखती है। और यह मुहिम परिवार का मुखिया हाथ में ले ले तो बेटियाँ बचेगी भी , आगे बढ़ेगी और मुक़ाम तक भी बढ़ेगी। फिल्म उस राज्य का प्रतिनिधित्व करती है। जहाँ दमख़म वाली महिलायें तो हैं पर उन्हें मन के अनुरूप काम करने की छूट नहीं है।फिल्म दर्शाती है कि आलोचक उदेश्य पूर्ति होने पर कैसे समर्थक बन जाते हैं।फिल्म में बाल सुलभ इच्छा ओं परम्परा से लड़ना , और आगे बढ़ने के दृश्यों का बहुत ख़ूब सूरत मूल्याँकन किया गया है।बच्चों का पिता का विरोध और ग़लती करके सीखने के दृश्य अत्यन्त भावपूर्ण रुप से फ़िल्माये गये हैं।इसके आलावा उदेश्य तक पहुँचने के लिये जुनून के हद तक की चाहत को दर्शा कर परिपक्व समाजोपयोगी समाज को दिशा देने वाली फिल्म है दंगल ।। @c रेणु जुनेजा
समाज का आइना भी दिखाती है दंगल
भारत में अपने राष्ट्रीय खेलों की साख को पुर्न जीवित करने के उदेश्य से बनायी गयी फिल्म दंगल देखने का मौक़ा मिला। आमिर की इस फिल्म ने आमिर को और निर्देशकों से अलग कर दिया।सतर करोड़ की इस फिल्म को देखने जायेंगे तो पायेंगे की देशप्रेम को एक नये तरीक़े से , सामाजिक समस्याका समाधान करते हुये फिल्म का निर्माण किया गया है। निर्देशन भी बहुत सशक्त और सधा हुआ है। जो दर्शकों पूरे समय बाँधे रखता है।फिल्म जहां कुश्ती की हमारी परम्परा से हमें बान्धे रखती है वही वही इस खेल को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की लालसा रखती है। दूसरी ओर यह महिला सशक्तिकरण विशेष रुप से बेटी पढ़ाओं, बेटी बचाओ को आगे ले जाती है। बेटी को मुक़ाम तक पहुचाओं को पूरा करती दिखती है। और यह मुहिम परिवार का मुखिया हाथ में ले ले तो बेटियाँ बचेगी भी , आगे बढ़ेगी और मुक़ाम तक भी बढ़ेगी। फिल्म उस राज्य का प्रतिनिधित्व करती है। जहाँ दमख़म वाली महिलायें तो हैं पर उन्हें मन के अनुरूप काम करने की छूट नहीं है।फिल्म दर्शाती है कि आलोचक उदेश्य पूर्ति होने पर कैसे समर्थक बन जाते हैं।फिल्म में बाल सुलभ इच्छा ओं परम्परा से लड़ना , और आगे बढ़ने के दृश्यों का बहुत ख़ूब सूरत मूल्याँकन किया गया है।बच्चों का पिता का विरोध और ग़लती करके सीखने के दृश्य अत्यन्त भावपूर्ण रुप से फ़िल्माये गये हैं।इसके आलावा उदेश्य तक पहुँचने के लिये जुनून के हद तक की चाहत को दर्शा कर परिपक्व समाजोपयोगी समाज को दिशा देने वाली फिल्म है दंगल ।। @c रेणु जुनेजा