Wednesday, March 5, 2014

हमारी धरोहर

मित्रों हम भारतीयों में विदेश जाने का क्रेज है. विशेषरूप से अमेरिका  जाने का. जिन भारतीयों के बच्चे अमेरिका जा कर बसे हैं उन माता पिता का तो कहना क्या? कल रात मेरे घर दो मेहमान आये.दोनों पति पत्नि थे और अमेरिका से जयपुर आये थे. पत्नि शीला और पति का नाम ग्रेग था.
यह दोनों मेरे पुत्र के परिचित थे.दोनों विदेशी, कम्पनी के साथ साथ पर्यटन के लिये जयपुर आये थे.दो दिन बाहर खाना खिलाने के बाद कल रात के  खाने पर घर बुला लिया.
पहली बार कोई विदेशी घर पर खाने पर आ रहे हैं इसे लेकर मैं और मेरे पति बहुत उत्साहित थे.क्योकि आज से पहले जितने भी विदेशी मेहमान वो ही लोग होते थे जो मूल रूप  से भारतीय ही होते थे.मूलत विदेशी मेहमान पहली बार हमारे साथ थे.
हमारे घर में आते ही उनकी पहली प्रतिक्रिया था कि कोई भी भारतीय घर पहली बार देखा है.मजे की बात यह थी कि आगन्तुक हिन्दी नही समझते थे और हमारी अग्रंजी मंशाअल्लाह .बावजूद इसके विचारों का आदान प्रदान निरन्तर बना रहा.हमारे कार्यों,की, उनके कार्यों की चर्चा देश विदेश की बोलियों ,भारतीय खानपान ,रीति रिवाजों का खुलासा , पारिवारिक  ढाचे पर चर्चा,भारत के शहरों वहां के दर्शनीय स्थलों की विस्तार जानकारी ली.
विदेशी आंगन्तुकों ने जयपुर के दर्शनीय स्थलों की प्रशंसा की,
आगंतुकों ने आपने देश और शहर और बच्चों की पूरी जानकारी दी.आपने देश के दर्शनीय स्थलों का फोटो एलबम दिखाया.  हमनें अपने विवाह के एलबम के माध्यम से भारतीय् विवाह की रस्मों को बता या जिसे देख सुनकर दोनों आंगन्तुक
अभिभूत थे.
इस सब चर्चा में मैंने पूछा . शील जी यू.एस.में बच्चे 18 वर्ष का होते ही माता पिता  से अलग हो जाते है़.शीलाजी ने बडी सहजता से कहा  हां कालेज पहुचंते ही बच्चों का अपना दायरा होता है. हमारा अपना. और आर्थिक कारण तो होते ही है.
हम भी ऐसे हीपले है.
यह है हमारी और उनकी संस्कृति का फर्क है.हमारी 82वर्षीय मां 58 वर्ष के पुत्र के लिये उतनी चिन्तित होती है जितनी पुत्र की आयु 6 माह होने पर होती थी.
यही है हम भारतीयों की धरोहर.

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